शाह की सोच, भाजपा का एजेंडा!

अमित शाह इतिहास जानते हैं। भले सीमित अर्थों में या अपनी वैचारिक प्रस्थापना के हिसाब से जानते हों। तभी उनको लग रहा है कि नया इतिहास लिखे जाने की जरूरत है। वे इतिहास के पन्नों से अपने मतलब की बातों को निकाल कर उसको राजनीतिक मुद्दा बनाने में सक्षम हैं। उनको पता है कि प्राचीन भारत में चाणक्य ने क्या किया था। वे यह भी जानते हैं कि गुप्त काल भारत के इतिहास का स्वर्ण युग था और तभी वैशाली व मगध साम्राज्य का पुराना झगड़ा सुलझाया गया था। वे जानते हैं कि अतीत का सबक भविष्य बनाने के काम में बहुत कारगर हो सकता है।


ठीक विपरीत हैरानी वाली बात है कि कांग्रेस या किसी दूसरी विपक्षी पार्टी का नेता कभी इतिहास की बात करता नहीं मिलेगा। भाजपा के नेता इतिहास की बात करते हैं तो कहा जाता है कि वे अतीत में अटके हैं। पर उसी अतीत में से भाजपा ने खोज कर छत्रपति शिवाजी को निकाला और विनायक दामोदार सावरकर को निकाला और समूचे महाराष्ट्र में ऐसी हवा बना दी, जिसके सामने विपक्ष के पांव ही जमीन पर नहीं टिक पा रहे हैं।


भाजपा पांच साल सत्ता में रही और कई लोगों को उसने भारत रत्न दिया। महाराष्ट्र के ही नानाजी देशमुख को पिछले साल भारत रत्न दिया गया। पर पांच साल में उसने कभी सावरकर को भारत रत्न देने पर विचार नहीं किया या किसी रणनीति के तहत इसे महाराष्ट्र के चुनाव तक रोके रखा। आज प्रधानमंत्री से लेकर पूरी पार्टी उनको भारत रत्न देने का राग गा रही है और कांग्रेस को समझ में नहीं आ रहा है कि वह इस पर क्या प्रतिक्रिया दे।