लोकसभा चुनावों में मिली बड़ी पराजय को पीछे छोड़कर विपक्ष के पास 'अजेय' नरेंद्र मोदी यानी भाजपा को घेरने का एक अच्छा अवसर हरियाणा और महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव थे। चंद महीनों बाद उसे झारखंड, बिहार और दिल्ली में इस अवसर को और बड़ा बनाने का मौका भी मिलनेवाला था।
यह 'था' इसलिए कि हालात बता रहे हैं कि विपक्ष यह अवसर अब खो बैठा है. वह अपने में ही घिर कर रह गया है। यही हाल उत्तर प्रदेश का है, जहां ग्यारह विधानसभा सीटों के उप-चुनाव में भाजपा की मोर्चेबंदी के सामने बिखरा हुआ विपक्ष टिक नहीं पा रहा।
बीते लोकसभा चुनाव की तरह विपक्ष के पास भाजपा के खिलाफ मुद्दों की कमी नहीं है। आर्थिक मंदी तेजी से पांव पसार रही है और देश-दुनिया के अर्थशास्त्री चिंताजनक बयान दे रहे हैं। पहले से जारी बेरोजगारी को बंद होते कारखाने भयावह बना रहे हैं. कृषि और किसान का हाल सुधरा नहीं है।
महंगाई बढ़ रही है। सामाजिक वैमनस्य और नफरती हिंसा का दौर थम नहीं रहा। आलोचना और विरोध का दमन बढ़ा है। इस सबके बावजूद विपक्ष भाजपा सरकार को जनता के सामने कटघरे में खड़ा करना तो दूर, इन्हें बहस का मुद्दा भी नहीं बना पा रहा। भाजपा के नेता एक ही हथियार से विपक्ष की बोलती बंद कर दे रहे हैं।
हारी हुई लड़ाई लड़ता विपक्ष